Wednesday, December 23, 2009

(४२)

कभी-कभी मैं पी लेता था,
आधा-चौथाई प्याला;
औ’ कहता था सबसे, मुझको
मदहोश न कर पायी हाला।

जब इक दिन मुझे पिला बैठी,
छककर यारों साकीबाला;
तब जाकर मुझको ज्ञात हुआ,
है विश्व-विजयिनी मधुशाला।

No comments:

Post a Comment