Monday, December 21, 2009

(१४)

प्रेयसि आओ मिल आज बनायें
अपने अधरों को प्याला,
इन मधुमय हाथों से हम-तुम
फिर डाल प्रणय की वरमाला;

तुम भी पी लो, मैं भी पी लूँ,
चिर तृप्ति न हो तब तक हाला;
बन जाये मधु यह प्रेम-अमर,
बाँहें बन जायें मधुशाला।

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