खुद नीचे गिरकर इस जग को,
तू देता है जीवन हाला;
धरती की प्यास बुझाने को,
तन-मन न्योछावर कर डाला।
हूँ देख तेरा मतवालापन,
मैं कहता, निर्झर, पी प्याला;
तेरा उद्गम है जहाँ, वहाँ,
थी कभी रही इक मधुशाला।
Wednesday, December 23, 2009
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