Monday, December 21, 2009

(१९)

टपक टपक कर बूँद-बूँद,
क्यों मुझको तड़पाती हाला?
नन्हा सा होकर जाने क्यों,
है मुझको तरसाता प्याला?

बस एक झलक दिखलाकर
क्यों गायब होती साकीबाला?
क्षण भर में ही बनकर मिट
जाती है क्यों मेरी मधुशाला?

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