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'सज्जन' की मधुशाला
Wednesday, December 23, 2009
(३७)
काश तेरे हाथों में कान्हा,
चक्र नहीं होता प्याला;
गीता का उपदेश नहीं,
तू अर्जुन को देता हाला।
आसमान से मधु-वर्षा कर,
करता सबको मतवाला;
कौरव-पाण्डव सब मिलकर,
पीते बैठ एक ही मधुशाला।
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