Wednesday, December 23, 2009

(६०)

कितना भी लिख लो यार, मगर,
कितना फिर भी रह जायेगा;
हम-सा, तुम-सा ही फिर कोई
आयेगा जग में मतवाला।

मदिरा पीकर, पागल होकर,
वह भी फिर कुछ लिख जायेगा;
और बन जायेगी यार पुनः,
इक नयी-नवेली मधुशाला।

2 comments:

  1. मदिरा पीकर, पागल होकर,
    वह भी फिर कुछ लिख जायेगा;
    और बन जायेगी यार पुनः,
    इक नयी-नवेली मधुशाला।
    बहुत सुन्दर. बधाई स्वीकारें

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  2. धर्मेन्द्र जी नमस्कार, एक नयी मधुशाला पढक्र अच्छा लगा बढिया लिखते है आप बधाई मेरे ब्लाग पर भी आपका स्वाग्त है।

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