skip to main
|
skip to sidebar
'सज्जन' की मधुशाला
Wednesday, December 23, 2009
(३०)
बूँद-बूँद कर सन्नाटा,
है टपक रहा बनकर हाला;
अंधकार ही घनीभूत हो,
आया है बनकर प्याला।
विधवाओं का सा वेश धरे,
है सिसक रही साकीबाला;
जग कहता मेरा भाग्य यही,
है ये ही मेरी मधुशाला।
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
कॉपीराइट नोटिस
© इस ब्लॉग पर उपलब्ध सारी सामग्री के कॉपीराइट सहित सर्वाधिकार "धर्मेन्द्र कुमार सिंह" के पास सुरक्षित हैं।
धर्मेन्द्र कुमार सिंह
की अनुमति के बिना यहाँ से किसी भी सामग्री को पूर्ण या आंशिक रूप से कॉपी नहीं किया जाना चाहिये। यदि आप यहाँ प्रकाशित सामग्री का प्रयोग करना चाहते हैं तो इसके लिये
धर्मेन्द्र कुमार सिंह
से ईमेल द्वारा लिखित अनुमति प्राप्त करें और प्रयोग करते समय सामग्री के रचनाकार के तौर पर "
धर्मेन्द्र कुमार सिंह
" नाम का स्पष्ट रूप से उल्लेख करें। ऐसा ना करने के स्थिति में आप भारतीय कॉपीराइट एक्ट के तहत अपराधी होंगे।
About Me
‘सज्जन’ धर्मेन्द्र
View my complete profile
मेरे अन्य ब्लॉग
स्वागत है धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’ के कल्पनालोक में
समय सत्ता यू ट्यूब चैनल पर मेरी ग़ज़ल "ये झूठ है अल्लाह ने इंसान बनाया" का वीडिओ देखें
-
3 years ago
Blog Archive
►
2012
(1)
►
July
(1)
▼
2009
(61)
▼
December
(61)
मधु आरती
(६०)
(५९)
(५८)
(५७)
(५६)
(५५)
(५४)
(५३)
(५२)
(५१)
(५०)
(४९)
(४८)
(४७)
(४६)
(४५)
(४४)
(४३)
(४२)
(४१)
(४०)
(३९)
(३८)
(३७)
(३६)
(३५)
(३४)
(३३)
(३२)
(३१)
(३०)
(२९)
(२८)
(२७)
(२६)
(२५)
(२४)
(२३)
(२२)
(२१)
(२०)
(१९)
(१८)
(१७)
(१६)
(१५)
(१४)
(१३)
(१२)
(११)
(१०)
(९)
(८)
(७)
(६)
(५)
(४)
(३)
(२)
(१)
आइये और हिन्दी काव्य के महासागर में डूब जाइये
Followers
No comments:
Post a Comment