Monday, December 21, 2009

(१०)

जो धुल न सके गंगाजल से,
वह पाप भी धो देती हाला;
जो मिल न सके चरणामृत से,
वह पूण्य भी देता है प्याला।

सौ सुन्दिरयों की मादकता,
देती है इक साकीबाला;
सारे तीर्थों के दर्शन का
फल दे देती इक मधुशाला।

No comments:

Post a Comment