Monday, December 21, 2009

(१८)

कल तक मेरे चरणों को
धोया करती थी यारों हाला,
सौभाग्यवान समझा जाता था
मेरे हाथों में प्याला।

और आज द्वार से ही दुत्कारे
देती है साकी बाला,
है फेर समय का अब मुझको
कह रही अपरिचित मधुशाला।

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