Wednesday, December 23, 2009

(३९)

अपराध बोध हो यदि मन में,
तो मत छूना यारों प्याला;
काबू ना हो यदि अपने पर,
होठों पर मत रखना हाला।

यदि डरते हो बदनामी से,
मत होना पीकर मतवाला;
हो छुपा रहे निज कर्मों को तो,
मत जाना तुम मधुशाला।

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