Monday, December 21, 2009

(१)

है और नहीं कुछ पास मेरे,
भगवन मैं हूँ इक मतवाला;
हूँ इसीलिए अर्पित करता,
भर मदिरा, इक नन्हा प्याला।

स्वीकार तुझे तो साथ मेरे,
तू झूम आज पीकर हाला;
और दे मुझको वर, भरी रहे,
मदिरा से मेरी मधुशाला।

3 comments:

  1. पढ़ कर मन मस्त हुआ मेरा
    और झूम उठा ये पागल दिल
    उद्गारों को झंक्रुत करती
    सज्जन तेरी ये मधुशाला

    इस का भरपूर नशा प्यारे
    अल्हड़ युवती सी लगती ये
    और लिए तजुर्बे भी सँग में
    हिचकोले खाती मधुशाला

    ReplyDelete
  2. आशीर्वाद पाया इसने तो
    झूम उठा मेरा प्याला
    पीकर तारीफ़ करी तुमने
    तो महक उठी मेरी हाला

    फिर फिर आना पीना गाना
    कहती तुमसे साकीबाला
    अब पुष्प बिछा दरवाजे पर
    कर रही प्रतीक्षा मधुशाला।

    ReplyDelete