है और नहीं कुछ पास मेरे,
भगवन मैं हूँ इक मतवाला;
हूँ इसीलिए अर्पित करता,
भर मदिरा, इक नन्हा प्याला।
स्वीकार तुझे तो साथ मेरे,
तू झूम आज पीकर हाला;
और दे मुझको वर, भरी रहे,
मदिरा से मेरी मधुशाला।
Monday, December 21, 2009
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पढ़ कर मन मस्त हुआ मेरा
ReplyDeleteऔर झूम उठा ये पागल दिल
उद्गारों को झंक्रुत करती
सज्जन तेरी ये मधुशाला
इस का भरपूर नशा प्यारे
अल्हड़ युवती सी लगती ये
और लिए तजुर्बे भी सँग में
हिचकोले खाती मधुशाला
आशीर्वाद पाया इसने तो
ReplyDeleteझूम उठा मेरा प्याला
पीकर तारीफ़ करी तुमने
तो महक उठी मेरी हाला
फिर फिर आना पीना गाना
कहती तुमसे साकीबाला
अब पुष्प बिछा दरवाजे पर
कर रही प्रतीक्षा मधुशाला।
awesome poem..A haiku infact!
ReplyDeletebahut hi vivid..